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इक लफ्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है सिमटे तो दिल- ए -आशिक़ फैले तो ज़माना है
मैं आफ़ताब-ए-इश्क़ में आशियाँ तलाशता रहा
इश्क़ थी मेरी ज़मीं मैं आसमाँ तलाशता रहा
मैं ग़ैर - ए - बेवफ़ाई में वफ़ा तलाशता रहा
रहबर था मेरा ख़ुदा मैं जन्नत तलाशता रहा
दिल का दर्द से रिश्ता गहरा हो गया तब से
दिल एक चाँद का शैदाई बन गया जब से
भूल पाया नहीं एक पल उसको तब से
दर्द के धागों में इश्क़ पिरोया जब से
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हर शाम चिराग़ों को बुझ़ा देता हूँ मैं
तेरी यादों की शमा ही काफी है मेरी रातें रौशन करने के लिए
हर रोज़ इस ख़याल से सहम जाता हूँ मैं
मेरी गली में तेरा आना ही काफी है मुझे रुसवा करने के लिए
तुम जिसे चाहो उसे जन्नत सी ख़ुशी दे दो
फिर मेरे हिस्से में क्यूँ ग़म आये तुम जानो या ख़ुदा जाने
शाम - ए - ग़म भी गुजरी है तेरे हसीं ख़्वाबों में
फिर मुहब्बत में क्यूँ हम पे सितम तुम जानो या ख़ुदा जाने
गुस्ताख़ी नहीं है ख़्वाहिश - ए - मुलाक़ात
पर ज़ज़्बात पे ज़रा एहतियात लाज़िम है
जुर्म़ नहीं है दीदार - ए - हुस्न
पर दीदार पे ज़रा इक़रार लाज़िम है
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अच्छा है जुर्म़-ए-मुहब्बत में मुल्ज़िम बन जाना
ख़ता - वार बन कर बेवफ़ा कहलाने से
ख़ुदा का मक़ाम है ये दिल ‘अर्श’
ना-ख़ुदा भी ग़म ज़दा होगा दिल के टूट जाने से
लुटा कर बेपनाह मुहब्बत उस पर क़ुर्बान हो जाऊँ
उसे अपना दिल बना लूँ और मैं धड़कन हो जाऊँ
जो हाल - ए - दिल इधर था ‘अर्श’
वो हाल - ए - दिल उधर भी था
इस दिल का हाल वो आज भी है
तुम्हें याद हो कि न याद हो
मुझको तेरी नज़रों में मुहब्बत नज़र आई
फिर मौत भी आई तो ज़रा ज़रा करके आई
कहते हैं शायर ये इश्क़ आग का दरिया है ‘अर्श’
मुहब्बत तो मासूम है ज़िन्दगी ही दर्द ले आईं
एहसास - ए - गुनाह होता है दिल के टूटने पे
दर्द तेरा जब भी ज़ख़्म दे जाता है हमें
तन्हा रहने को दिल करता है बिन तेरे
ख़्वाब में तेरी ज़ुदाई जब भी नींद से जगाती है हमें
कौन कहता है दुनिया में ख़ुदा नही होता
मुझे तो मुहब्बत में रब्ब नज़र आया
कौन कहता है दिल के ज़ख़्मों को सिया नही जाता
मुझे तो हर ज़ख़्म का इलाज़ मुहब्बत नज़र आया
आ आसमाँ पे ले कर चलूँ तुझ को
फ़लक पर सितारों से मिला दूँ तुझ को
जितना जी चाहे तेरा आज सता ले मुझ को
आहें न भरुंगा रुसवा भी न करूंगा तुझ को
मौत के आग़ोश में सो जाऊंगा तेरे लिए
बस तेरी बाहों की पनाह में सुला ले मुझ को
रूठे सारा जहां तो क्या न यूँ जहां से रूठे रहिये
प्यार के सागर में जहां के सारे ग़म भूले रहिये
दर्द को दिल से ज़ुदा करके भी
दर्द भुला नहीं पाऐ हम
दर्द को दर्द - ए - दिल बनाने की ज़िद में
दिल की सुन नहीं पाऐ हम
दिल कतरा - कतरा कर बैठे
मगर दिल में मुहब्बत सजा बैठे
वो बे - वफ़ा थे दिल मासूम था
वो फिर भी दिल दुखा बैठे
बात कुछ भी न थी दिल के रिश्तों के सिवा
फिर भी तेरी बे-वफ़ाई ग़ैरों को न बता पायेंगे हम
तेरे दिये ज़ख़्म हंसते हैं मुझ पे
पर तेरी बे-दर्दी पे ख़फ़ा न हो पायेंगे हम
ग़र वो समझते प्यार के क़ाबिल हमें
दिल न होता यूं काफ़िर मेरा
ग़र वो समझते इंसां क़ामिल हमें
ज़ुदा न होता यूं हमसाया मेरा
चाँद से चाँद के टकराने का ख़नक
तेरी हँसी की ख़नक से मिलती है
बदली से चाँद के निकलने का सबब
तेरे चेहरे पे उड़ती ज़ुल्फ़ों से मिलता है
ग़र राज़ - ए - इश्क़ बे - पर्दा नही होता
जान न पाते सनम आख़िर ख़ुदा नही होता
सिर्फ इशारों में होती ग़र मुहब्बत
कोई गीत ग़ज़ल तरन्नुम नही होता
उसके लरज़ते होठों पर शबनम का कतरा क्या रह गया
हैरां है दिल उसे देखकर क्या देखा क्या रह गया
वसल की चाह में आरिज़ सुर्ख़ क्या हुए
उलझन में है रस्मे-वफ़ा क़ुर्बतें क्या बढ़ी क्या रह गया
हमें हमदर्द न समझ चाहे हमसाया न समझ
राहे वफ़ा पे हमें हमसफ़र तो रहने दे
हमें आशिक़ न समझ चाहे शैदाई न समझ
जीवन की बैरंग राहों पे मुहब्बत का रंग तो भरने दे
तेरी नज़र में हम गुनाहग़ार सही
पर अपनी नज़र में बे - दाग़ हैं हम
तेरे शहर में हम मुसाफ़िर ही सही
पर अपनी निगाहों में तेरी मंज़िल हैं हम
निकले ज़नाजा मेरा तेरी गली से कुछ इस तरह
कफ़न न हो चेहरे पे मेरे और झरोख़े को तेरे बे-पर्दा कर दे
ख़ुदा से क्या माँगू तू ही तो मन्नत है मेरी
हूर की नहीं चाहत तू ही तो ज़न्नत है मेरी
दिल के बदले दिल लेना है तिजारत तो
यही दुनिया की रीत और तू रिवायत है मेरी
दर्द - ए - इश्क़ से ज़िंदगी लबालब है यारों
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं यारों
रौशन चिराग़ जब बुझ गए महफ़िल में
पूछा किसी ने मेरा आ के हाल - ए - दिल
सोचा था यही आगाज़-ए-राह-ए-मुहब्बत है
उन्हें यूँ नगमा-ए-दर्द-ए-मुहब्बत सुना दिया
सँभल न जाऐं कहीं हम फिर गिरते - गिरते
लबों से यूँ जाम साक़ी ने फिर लगा दिया
मिट गये और मिट जाऐंगे अज़ीम-ओ-शान शहंशाह
बे-आज़माईश आबाद हो गये ढ़ाई अक्षर इल्म रखने वाले
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