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इक लफ्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है सिमटे तो दिल- ए -आशिक़ फैले तो ज़माना है
हम अपने जख़्मों का कहाँ हिसाब रखते हैं
कौन कब खेला दिल से कहाँ किताब रखते हैं
तमन्ना है न हो चश्म नम़ उनकी हमारी वज़्ह
कोई और ख़्वाहिश हो पूरी कहाँ ख़्वाब रखतेहैं
वो हुस्न बे पनाह हम इश्क़ बे नियाज रखते हैं
पर उन सा हिजाब में कहाँ आफताब रखते हैं
दुनिया उनकी दिवानी इस जानिब ख़ुदा भी नहीं
और वो सोचते हैं हम कहाँ अजाब रखते हैं
मुकम्मल की तैयारी हमारे क़त्ल की मगर
जान न पाये वो हम कहाँ दिले बे ताब रखते है
पत्थर के ख़ुदा कभी पत्थर के सनम मिले
रिश्ते दिल से निभाये थे हमें ज़ख़्म मिले
कारवां- ए -इश्क़ पे अभी कुछ दूर थे चले
कभी उनके तो हमें कभी अपने ग़म मिले
याद थे उन्हें हम वो फिर भी अंजान चले
तड़पता है दिल वो जब भी मिले चश्म नम़ मिले
छुआ था उसकी परछाईं ने मुद्दतों पहले
महकती है रूह आज भी जैसे वो कल ही मिले
हर घड़ी दिल से ये वहम क्यूँ जाता नहीं
वो जब भी मिले हमें बे-रूह जिस्म से मिले
चराग़ रोशन हुए तो अँधेरे रूठ चले
लाज़मी नहीं फिर वो शब वो आलम मिले
कौन किस को यूँ ही दिल में जगह देता है
काश भटकते दर्द को भी ‘अर्श’ दिल में मक़ाम मिले
ज्यों ज्यों तेरी ख़्वाहिश बढ़ रही है
ख़ुदा से मेरी रंजिशें बढ़ रही है
कतरा कतरा प्यासी है ये जिन्दगी
प्यास जितनी बुझाता हूँ बढ़ रही है
हर लम्हा तन्हा तन्हा है जिन्दगी
तन्हाई जितनी मिटाता हूँ बढ़ रही है
ख़फा ख़फा है मुझसे मेरी हर खुशी
मायूसी जितनी मिटाता हूँ बढ़ रही है
हर धड़कन खाली खाली है ये दिल
तुमसे जितना सजाता हूँ बेकसी बढ़ रही है
हर शै हद से बढ़ जाता है ये इश्क़
सब्र जितना दिलाता हूँ बेसब्री बढ़ रही है
ज़र्रा ज़र्रा पिघल रही है ‘अर्श’ यह रूह
है आग़ जितनी बुझाता हूँ बढ़ रही है
हमारी ख़ाक-ए-मुहब्बत में कुछ उसका निशाँ भी है
जो दर्द इन दिनों वज्ह ज़ीनत - ए - जाँ भी है
हमारे उलझे सितारों में कुछ उसकी नवाज़िश भी है
जो आवारगी इन दिनों वज्ह ख़ुमार-ए-इश्क़ भी है
हमारी मेहरूमी-ए-बहार में कुछ उस की बेरूख़ी भी है
जो बे-वफ़ाई इन दिनों वज्ह शब-ए-तन्हाई भी है
हमारी तपिश - ए - दिल में कुछ उस का गुनाह भी है
जो ग़म इन दिनों वज्ह ज़ेबा - ए - जाँ भी है
हमारी तबाही में ‘अर्श’ कुछ उस का एहसाँ भी है
जो जुुदाई इन दिनों वज्ह कज़ा - ए - जाँ भी है
जख़्म देकर ख़ुद मरहम लगाता है
मिरा महबूब मुझे कितना चाहता है
ग़म देकर ख़ुद भी अश़्क बहाता है
मिरा हमदम यूँ साथ निभाता है
क़रार देकर ख़ुद बेक़रार हो जाता है
मिरा सनम मुझे कितना सताता है
इजाज़त देकर ख़ुद भूल जाता है
मिरा साजन मुझे बहुत याद आता है
मिरे दिल में ख़ुद को छोड़ जाता है
मिरा फरिश्ता यूँ इश्क़ जताता है
तुझे हुस्न-ओ-शबाब का गुरूर है मुझे हम-सायगी का जुनून है
तू सबा-ए-इश्क़ में घुल गया मैं चाहत-ए-वफा में पिघल गया
तुझे हुस्ने बे-मिसाल का गुमां है मुझे दिले नायाब का नशा है
तेरी बद - गुमानी रूला गयी मेरी मुहब्बतें सता गयी
तुझे अदा-ए-हुस्न का नाज़ है मुझे जुनून-ए-इश्क़ का सुरूर है
तेरी अश्क़िया दिल दुखा गयी मेरी ज़ुुस्तजु प्यास बढ़ा गयी
तुझे हुस्ने जमाल का गुरूर है मुझे आतिशे दिल का ख़ुमार है
तेरा इन्कार तबाह कर गया मेरा इज़्हार रूसवा कर गया
तुझे रस्मे वफा कहाँ अज़ीज़ है मेरे बेकस दिल को कहाँ क़रार है
तेरा अन्दाजे हुस्न गज़ल बन गया मेरा कारवां-ए-इश्क़ गुज़र गया
तुझे मेरी कोई ख़बर भी है मेरे ख़ैर - ख़्वाह
तेरा ख़्वाब ख़्वाब बन गया मैं ख़ाक-ए- इश्क़ बन बिखर गया
उनसे मिले मुद्दत हुई मगर वो भुले न हम
भूलिए मगर भूल जाने का मज़ा हमसे पूछिये
जब से हम जुदा हुए वो मुस्कुराए न हम
मुस्कुराईये मगर मुस्कुराने का मज़ा हमसे पूछिये
आपका जाना मंजूर है इंतजार करने के लिए
इंतजार कीजिए मगर इंतजार का मज़ा हमसे पूछिये
आपका आना कुबूल है फिर न कभी जाने के लिए
आईये मिलिए मगर मिलने का मज़ा हमसे पूछिये
और कुछ आरजू नहीं आपके दीदार के सिवा
दीदार कीजिए मगर दीदार का मज़ा हमसे पूछिये
राज-ए-इश्क़ आम हुआ आपकी नजरों की बे-वफ़ाई से
बे-वफ़ाई कीजिए मगर बे-वफ़ाई का मज़ा हम से पूछिए
‘अर्श’ पहली नज़र में प्यार हुआ वो जान पाये न हम
आग़ाजे़-इश्क़ कीजिए मगर अंजामे-इश्क़ का मज़ा हमसे पूछिये
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